मधुशाला है एक दलदल , धंसते जाना है वहीं लालच वहीं माया, फँसते जाना है अज्ञानता से मोहवश लगता यही है प्रेम अपार ये काम मद मोह सब, माँगे समय और कुंध विचार माया है यह, नहीं समभले तो करेगी तिरस्कार। […]
क्यों न होगी
चन्द लम्हों को अपने समेट, बयां जो कर बैठे हो नाम उसका, तुम्हारी वाहवाही क्यों न होगी, दिल चीर कर जख्मों को दिखा जो दोगे अगर, तुम्हारी चाहत क्यों न होगी। —– […]
क्यों चल रहा तू करता संग्राम सा
किल्लतों में जीता मरता जरूरतों की झोली भरता कहीं मुस्कराना या फिर कहीं छुपाना यही है तेरा एक अंदाज सा क्यों चल रहा तू करता संग्राम सा। —— अग्रसर है दुनिया की […]