आज देखा वो मंजर दिल बाग बाग हो उठा
बैठे हैं साथ मिल कर, ये देख हर्षोल्लास हो उठा,
उठा लिया करते थे तरकश जो शक्ल ओ सूरत देखकर
संग मे करते हैं बातें आज, एक दूसरे से हाथ मिला कर,
आज भी जज्बातों में तीर तो थे मजाक में निशाने पर
बैठे तो सही, समुद्र मंथन करने को हैं तय्यार पर,
इतिंहा हुई थी कल तलक, महाभारत था कगार पर
हो गई सुलह, शायद अब साया के चौपाल पर.. ।
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waah…..khubsurat kavita.
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